Saturday, June 26, 2010

डा. मसारू ईमोतो से - मैक्सिको की खाड़ी में तेल रिसाव के बारे में तत्काल संदेश-

मैं मेक्सिको की खाड़ी में तेल रिसाव के बारे में इस सुबह  समाचार देखा. समाचार में, जापानी टीवी चालक दल एक नाव ले  कर उस  दृश्य को देखने के लिए चल पड़े  जहाँ तेल का भारी मात्रा में मेक्सिको की खाड़ी में गिर रहा था . वे मिसिसिपी नदी के मुँह से चले  और वे 1 घंटे के बाद दृश्य के स्थान पर पहुंच गए . तेल हर रोज भारी मात्रा में बाहर आ रहा  था  और  संवाददाता ने कहा कि यह सिर्फ समय की बात है कि तेल किनारे तक पहुँच जाए .



रिपोर्टर के  एक नाव द्वारा दृश्य की जगह बाद पहुंचने के बाद , उसने  एक कप के साथ समुद्र का पानी निकाला  और उसका जाँच किया कि उसके  अंदर क्या है. तो देखा वहाँ कप में एक युवा मछली का शव था. यह केवल एक छोटा सा डोल था लेकिन मछली का शव वहाँ  था.यह सोच कर मुझे जोरदार सदमा लगा कि  कितने जीव पूरे  महासागर में इस तेल से खत्म हो चुके होंगे .



तब, जब वे वापस अपने रास्ते पर थे,  समुद्र क्षेत्र पर डॉल्फ़िन का  सामना करना पड़ा, जहां वे पहले  कभी दिखाई नहीं पड़ती थी   . डॉल्फ़िन जहां तेल गिरा था बहां से  दूर  तट की ओर से भाग रहे थे. क्या होगा अगर आगे तेल किनारे तक बड़ आता है. जवाब स्पष्ट है.



एक पानी के अनुसंधानकर्ता के रूप में, मैं हमेशा सोचता हूँ कि क्यों तेल और पानी को  संयुक्त नहीं किया जा सकता है. शायद वैज्ञानिक एक समीकरण का  उपयोग करके  इस सवाल का जवाब दे सकते  है, यह समझना मुश्किल है और मुझे लगता है कि उनका  जवाब मेरे जरूरी सवाल "क्या है यह ?" का जवाब नहीं हो   सकता  तो एक पानी के दूत के  दृष्टिकोण से ,  मैं इस सवाल के बारे में अपने विचारों का उल्लेख करना चाहूँगा .



"जल सभी चीजों का  मूल  है."



कोई भी इस बात से जो यूनानी दार्शनिक थेल्स द्वारा 2500 ईसा पूर्व में कहा गया था इनकार नहीं करेगा. सब चीजों को  पानी में निर्माता के  खाका द्वारा बनाया गया था और हम कह सकते हैं कि पानी के लिए सभी चीजों के साथ गठबंधन करने में सक्षम होना चाहिए. एक शब्द में, पानी को सब कुछ पसंद है.



हालांकि, पानी तेलों के साथ गठबंधन नहीं करता , पानी  तेलों को नापसंद करता  है. शायद, यह kahne    के लिए  "" पसंद "या" नापसंद "शब्द का प्रयोग उचित नहीं है, क्योंकि पानी की भावनाओं नहीं है. पानी की महान भूमिका  महान प्रकृति में जीवन की  रक्षा करना और इसे  बनाए रखना है.  तो पानी अपनी भूमिका को परेशान करने से चीजों को  मना कर सकता है.



वहाँ एक और परिघटना है कि पानी की सराहना करते नहीं करता है. यह ऊर्जा पर एक अंतर मुद्दा है. पानी कुछ भी भेदभाव नहीं करता और सुलह और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना के साथ रहता है . अगर कहीं ऊर्जा के असंतुलित की स्थिति  है, पानी हमें  सुनामी, तूफान या भूकम्प बनकर  चेतावनी देता है.



वैसे, क्यों तेल उत्पाद मानव शरीर पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं जबकि  तेल भी प्रकृति के  ही उत्पाद हैं जो मूलतः भूमिगत  रहे हैं. मेरा जवाब इस तरह है.


मुझे लगता है कि तेल तरल बने जीव हैं जो इस पृथ्वी के बनने वक्त ही भूमिगत जमा हो  गए थे और किसी भी जीव में हमारे पूर्वज या पशुओं की आत्माओं द्रवीभूत शामिल हैं.



मुझे लगता है कि सभी जीवित जीव  जो नूह की बेड़ी   पर सवार होने में सक्षम नहीं थे  जब अटलांटिस और मू गायब हो गए  थे  भूमिगत में खो गए थे और वे पेट्रोल का एक हिस्सा बन गए थे . तो, मेरे विचार यह है कि पेट्रोल तेल  बहुत ज्यादा भय और शिकायत से ओत्पोत  है और वे मानव शरीर पर नकारात्मक असर डालते हैं.



बेशक यह वैज्ञानिक सबूत के बिना एक विचार है और मैं इस पर कोई भी आलोचना अर्जित करने    को तैयार हूँ.



वैकल्पिक ऊर्जा जिस द्वारा तेलों  को प्रतिस्थापित किया जा सकता है के  जन्म की  हाल ही में जापान में घोषणा की गई है. यह वास्तव में  पानी से निकाली ऊर्जा है जो मेरे विचार की पुश्टी करती  कि पानी से  ऊर्जा निकाली जा सकती है और यह बात  मैं बीते 20   वर्षों से  कह रहा है. यह  पानी से ओक्सी-हाइड्रोजन गैस कहलाती  सुरक्षित ऊर्जा निकालने के लिए  तकनीक है. आप निम्न वीडियो से प्रौद्योगिकी देख सकते हैं.





तेल मनुष्य के लिए जरूरी हैं, लेकिन यदि आप पारिस्थितिक दृष्टिकोण के बारे में गंभीर हो , यह अनुकूल नहीं है. वह यह है कि लोगों का  सबसे बड़ा भाग सोचता है, लेकिन क्योंकि वहाँ वास्तव में अन्य वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत नहीं  लोगों ने आपत्तियां नहीं उठाई हैं. हालांकि, अंत में हमें प्रौद्योगिकी मिल चुकी है  जिस से हमें वैकल्पिक ऊर्जा मिल सके जो  तेल की जगह ले  सकती है.



"जल हमारे मन का  आईना है"  यह है जो मुझे पानी द्वारा पढ़ाया गया था और अब यह  इस तकनीक का समर्थन करने के लिए महत्वपूर्ण है जो हर जगह दैनिक जीवन में इस्तेमाल की जानी है  .



मेरा मानना है कि लोग हैं, जो मेक्सिको की खाड़ी में मत्स्य उद्योग में शामिल हैं और  अब पीड़ित हैं लेकिन आर्थिक मुद्दों  के रूप में, अमेरिकी सरकार और अन्य देश उन्हें समर्थन करेगा और यह एक अत्यंत अहम बात होगी . महत्वपूर्ण बात यह है कि हम इस गलती से सीखते हैं और यकीनी बनाते  है कि  इस प्रकार की चीजें भविष्य में कभी न  हो और प्रकृति के पर्यावरण की रक्षा के लिए  हमें  पानी से ऊर्जा  लेने के लिए  इस प्रौद्योगिकी को बहुत गंभीरता से लेना होगा . मुझे सच में आशा है कि यह  तकनीक उपलब्ध हो जाएगा और जल्द से जल्द  हर किसी के उपयोग में आएगा .



अब हम इस तरह प्रार्थना से प्यार और आभार की ऊर्जा मैक्सिको की खाड़ी में सभी जीवित प्राणियों के लिए  देते हैं.



व्हेल , डॉल्फ़िन, पेलिकंस  , मछलियों, घोगों , प्लान्क्तोंस  , कोराल, शैवाल और मेक्सिको के खाड़ी के सभी  जीवों को


मुझे खेद है.


कृपया मुझे माफ कर दीजिए.


धन्यवाद.


मैं तुम्हें प्यार करता हूँ.

Friday, June 25, 2010

ਪਾਣੀ ਦਾ ਮਸਲਾ

ਪਾਣੀ ਸਾਡੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਅਹਿਮ ਮਸਲਾ ਬਣ  ਚੁੱਕਾ  ਹੈ . ਮਸਲਾ ਦਿਨ ਬਦਿਨ ਹੋਰ ਗੰਭੀਰ ਬਣਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ .ਜੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਦਸਤੂਰ ਕਾਇਮ  ਰਿਹਾ ਤਾਂ  ਇਸ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ  ਜੀਵਨ ਦਾ ਕੀ ਬਣੇਗਾ  ? ਇਹ ਸਵਾਲ ਅੱਜ ਦੇ  ਸਮੇਂ ਦਾ ਵਿਰਾਟ ਸਵਾਲ ਬਣ ਕੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਗਿਆ ਹੈ.


ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਛੋਟਾ ਸੀ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤਾਂ ਗੱਲ ਛੱਡੋ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ਵੀ ਇੱਕ ਜਾਂ ਦੋ ਵਾਰ ਪੰਪ ਦੀ ਹੱਥੀ ਗੇੜਨ  ਨਾਲ  ਪਾਣੀ ਨਿਕਲ ਆਉਂਦਾ ਸੀ ,  ਪੰਜ ਦਸ ਫ਼ੁਟ ਤੇ ਹੀ ਪਾਣੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ .  ਹੁਣ ਬਹੁਤ ਥਾਈ  600 ਫੁੱਟ  ਤੇ  ਵੀ ਪਾਣੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ .


ਪਹਿਲਾਂ ਤੇਲ ਲਈ ਲੜਾਈਆਂ  ਹੁੰਦੀਆਂ  ਸਨ ਹੁਣ ਇੱਕੀਵੀਂ  ਸਦੀ  ਵਿੱਚ ਪਾਣੀ ਲਈ ਲੜਾਈਆਂ ਹੋਣਗੀਆਂ .  ਦਰਅਸਲ ਇਹ  ਲੜਾਈਂਆਂ  ਤਾਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਚੁੱਕੀਆਂ ਹਨ .


ਦੱਖਣ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਤਾਂ ਕਈ ਜਗ੍ਹਾ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਦੰਗੇ ਫਸਾਦ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਹਨ .
ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨ  ਦੇ ਵਿੱਚ  ਪਾਣੀਆਂ ਦਾ ਸਵਾਲ ਬਾਕੀ ਸਵਾਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਅੱਗੇ ਆਉਂਦਾ ਨਜ਼ਰ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ .  ਗੋਲਨ ਹਾਇਟਸ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵੀ ਵਾਟਰ ਵਾਰ ਹੀ ਸੀ . ਅੱਜ ਦੇ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਅਰਥਚਾਰੇ ਤੇ ਨਿਗਾਹ ਮਾਰੀਏ ਤਾਂ ਕੋਈ ਵੀ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਵੇਖ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇੱਕ ਵਪਾਰਕ ਵਸਤੂ ਵਜੋਂ ਪਾਣੀ ਤੇਲ ਵਰਗੀਆਂ ਕੁਝ ਕੁ ਪ੍ਰਮੁਖ ਜਿਨਸਾਂ ਵਿੱਚ ਕਦੋਂ ਦਾ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਹੈ.
ਅਸਲ ਮੁੱਦਾ ਪਾਣੀ ਦੀ ਕਮੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਇਹਦੀ ਸਾਂਭ ਸੰਭਾਲ ਅਤੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਹੈ.ਸਵਾਲ ਇਹ ਹੈ  ਕਿ ਅਸੀ ਤੁਸੀ ਕੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ . ਸਾਰੇ ਮੰਨਦੇ  ਹਨ ਕਿ ਵਕ਼ੂਫ਼ੀ (ਅਹਿਸਾਸ ਦਾ ਹੋ ਜਾਣਾ )ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਚੀਜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ .  ਇੱਕ ਜ਼ਮਾਨਾ ਸੀ ਜਦੋਂ ਅਸੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਪੂਜਾ  ਕਰਦੇ ਹੁੰਦੇ ਸੀ . ਗੁਰਬਾਣੀ ਨੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਪਿਤਾ ਦਾ ਦਰਜਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ. ਉਦੋਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਇਸ ਦੀ ਕਦਰ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਸੀ. ਜੇ ਕੋਈ ਬੱਚਾ ਸਾਫ਼ ਵਗਦੇ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਮੂਤ ਕਰਨ ਦਾ ਤਮਾਸ਼ਾ ਵੇਖਣ ਦਾ ਲਾਲਚ ਕਰ ਬੈਠਦਾ ਸੀ ਤਾਂ ਵੱਡੇ ਉਸ ਨੂੰ ਤੁਰਤ ਘੂਰ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਐਸਾ ਕਰਨਾ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ.


ਉਦੋਂ  ਪਾਣੀ ਸਮੁਦਾਇਕ ਇਸਤੇਮਾਲ ਦੀ ਚੀਜ ਹੁੰਦੀ ਸੀ .  ਲੋਕ ਪਾਣੀ  ਦੇ ਸਰੋਤ  ਦੇ ਕੋਲ ਜਾਕੇ ਪਾਣੀ ਭਰਦੇ ਸਨ ਲੇਕਿਨ ਹੁਣ ਪਾਣੀ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ .  ਹੁਣ ਤਾਂ ਸਾਡੇ ਬਾਥਰੂਮ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪਾਣੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ .ਪਰ ਅਸੀਂ ਇਸ ਦੀ ਕਦਰ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ ? ਪੰਪ ਗੇੜ ਕੇ ਪਾਣੀ ਕੱਢਣ ਨਾਲ ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਜੋ ਰਿਸ਼ਤਾ ਬੰਨਦਾ ਸੀ ਉਹ ਹੁਣ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ.ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਜਿਆਦਾ ਸਿਆਣੇ ਸਮਝਣ ਵਾਲੇ ਸੂਟਿਡ ਬੂਟਿਡ ਸ਼ਹਿਰੀ ਲੋਕ ਨਹਾਉਣ ਲੱਗਿਆਂ ਮਣਾਂ ਮੂੰਹੀ ਪਾਣੀ ਅਜਾਈਂ  ਰੋੜ੍ਹ ਦਿੰਦੇ ਹਨ .


ਦਰਅਸਲ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਪਾਣੀ  ਦੇ ਪਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਅਣਗਹਿਲੀ  ਹੈਰਾਨਕੁਨ ਹੈ .  ਮੀਂਹ  ਦੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਹਾਰਵੇਸਟਿੰਗ ਕਿਤੇ - ਕਿਤੇ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ਜੋ ਚੰਗੀ ਗੱਲ  ਹੈ .  ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਿਤੇ ਕਿਤੇ ਕਨੂੰਨ ਹੈ ਕਿ ਮੀਂਹ  ਦੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਹਾਰਵੇਸਟਿੰਗ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ   ਦੇ ਬਿਨਾਂ ਮਕਾਨ  ਨਹੀਂ ਬਣੇਗਾ  .  ਅਜਿਹੇ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਸਾਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ . ਅਸੀਂ ਸਥਿਤੀ ਦੀ ਨਜਾਕਤ ਉੱਕਾ ਬੇਖ਼ਬਰ ਜ਼ਮੀਨ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਮਗਰ ਪਏ ਹੋਏ ਹਾਂ .

Reasons For The Left's Atrophy -Dileep Padgaonkar

(Here is piece from Times of India, May 8, 2010)

How and why the Left movement in India is in a state of terminal atrophy is exposed to broad daylight in a privately published book released in Delhi earlier this week. Friends, admirers and close relatives of Mohit Sen, a communist of rare vintage, along with P C Joshi, pay tribute to his uncommon gifts of head and heart. The book also includes Sen's correspondence with some of the 20th century's leading minds whom he had met first while he studied at King's College in Cambridge in the 1940s and later when he was a full-time worker of the Communist Party of India.

These reminiscences serve to emphasise yet again that India's communists, much like the Bourbons, will learn nothing and forget nothing. They drew no lessons from Nikita Khrushchev's denunciation of Stalin's brutal regime at the 20th congress of the CPSU in 1956. The dictator had murdered innocent people on a scale that wasn't rivalled even by Hitler's evil pogroms. He had sent millions suspected of defying the Party to the Gulag where most of them perished. But the Indian communists, like most of their comrades elsewhere in the world, remained tight-lipped.

Nor did they raise a little finger to denounce Moscow's suppression of the revolt in Hungary in 1956 or the Prague Spring in 1968. Attempts made by some west European parties in the period that followed to strike a balance between social equality, economic growth and democratic freedoms did not impress them the least bit. Tito's efforts to find a middle way between the market economy and socialism in Yugoslavia generated derision, insult and ostracism.

The Indian communists did not care to candidly acknowledge the reasons for the implosion of the Soviet empire. For those with eyes to see and ears to hear the reasons were all too obvious: state control had atrophied the economy, lack of freedom of thought and expression had asphyxiated creativity in most fields, fear of the secret police stalked every nook and cranny of the Socialist Paradise.

But none of this was of any consequence to the Indian communists. All they did was to tom-tom the achievements of the Socialist Fatherland: full employment, social welfare that took care of the needs of every citizen from the cradle to the grave, a hundred per cent literacy rate and so on. And they missed no opportunity to flaunt Moscow's anti-fascist, anti-colonial and anti-imperialist bona fides. This, in their view, exonerated the regime's 'aberrations'.

Even after the collapse of the Soviet empire the Indian communists chose to remain cloistered in their dogma. They continued to extol two regimes which swore by the eternal verities of Marxism-Leninism: Cuba and North Korea. And they cried victory whenever any party anywhere in the world railed against US 'imperialism'. That included populist parties in Latin America and the radical Islamic republic of Iran, not to mention Saddam Hussein's Iraq.

Equally galling has been the mindless and misleading enthusiasm of the Indian comrades for China. They spoke not a word about the depredations resulting from Mao Zedong's policies including the Great Leap Forward and the Cultural Revolution. Nor is there a squeak from them about the post-Mao policies. China's unbridled capitalism, its crass exploitation of raw materials and energy resources in many developing nations and its increasingly cosy relationship with the American 'imperialists' are, in their eyes, of trivial importance.

In the wake of the Soviet empire's implosion several communist parties began to address the flaws in the ideology that sustained it: neglecting or underestimating the strength of nationalism, the significance of ethnic, religious and caste loyalties, the potential of technology and entrepreneurship to inject dynamism in the economy and, not least, the huge benefits of a democratic system. The Indian communists showed little sign of engaging in such an exercise.

Mohit Sen, a man who for long years had justified communist tyranny, was nevertheless open to fresh ideas. He was eager to bring together all forces that were opposed to communalism and iniquitous growth, fiercely committed to patriotism and democracy and tried to breach the walls of communist dogma. The party he had served with exemplary devotion chose to do what came naturally to it: it expelled him without ceremony.


Thursday, June 24, 2010

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਬੁੱਢੇ ਨਹੀਂ ਸਨ - ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ ਜ਼ਫਰ -

ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਬੁੱਢਿਆਂ ਦੀ ਵੁੱਕਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ। ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਇਹ ਘਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨੁੱਕਰਾਂ ਵਿਚ ਪਏ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਵਡੇਰੀ ਉਮਰ ਕਾਰਨ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਤਾਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਨੂੰ ਸਮੇਂ ਦੇ ਹਾਣ ਦੀਆਂ ਨਹੀਂ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ।


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- ਲੇਖਕ -
ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਜਾਂ ਸਿਧਾਤਾਂ ਦੀ ਕੋਈ ਅਹਿਮੀਅਤ ਨਹੀਂ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ। ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਅਸੀਸ ਅਤੇ ਆਸ਼ੀਰਵਾਦ ਤਾਂ ਸੁਹਾਵਣੇ ਲੱਗਦੇ ਹਨ, ਪਰ ਕਾਰ-ਵਿਹਾਰ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਦਖ਼ਲ ਚੁੱਭਦਾ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਨਾਮ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਪਛਾਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਹਸਤੀ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸਮੁੱਚੀ ਸਰਗਰਮੀ ਦਾ ਕੇਂਦਰੀ ਧੁਰਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ। ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਆਪਣੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਦੇ ਵਾਰਿਸ ਹੋਣ ਤੇ ਗੌਰਵ ਤਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ਪ੍ਰੰਤੂ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਅਸੂਲਾਂ ਦੇ ਧਾਰਨੀ ਹੋਣ ਦਾ ਸਿਦਕ ਘੱਟ ਹੀ ਪਾਲਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਦਾ ਕਸੂਰ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਤਾਂ ਬੁਢਾਪੇ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਅੱਜਕੱਲ੍ਹ ਦਾ ਸੁਭਾਵਿਕ ਸੱਚ ਹੈ।ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਵਲੋਂ ਮਨੁੱਖਾਂ ਲਈ ਨਿਰਧਾਰਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਆਚਾਰ ਵਿਹਾਰ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਸਾਡੇ ਰਵੱਈਏ ਕਾਰਨ ਇਹ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਨੂੰ ਇਕ ਬਿਰਧ ਬਾਬੇ ਵਾਂਗ ਹੀ ਚਿਤਵਿਆ ਜਾਏ। ਜਿਸ ਦੀ ਸ਼ਰਧਾ ਸਹਿਤ ਪੂਜਾ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋਈਏ, ਧੂਫ ਬੱਤੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋਈਏ, ਮੱਥੇ ਟੇਕ ਸਕਦੇ ਹੋਈਏ ਪਰੰਤੂ ਆਖੇ ਨਾ ਲੱਗ ਸਕਦੇ ਹੋਈਏ ਉਸ ਨੂੰ ਬਿਰਧ ਰੂਪ ਵਿਚ ਚਿਤਵਣ ਨਾਲ ਮਾਨਸਿਕ ਸਹੂਲਤ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ। ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ ਅਨੁਸਾਰ ਢਾਲਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਅਸੀਂ ਗੁਰੂ ਦੀ ਦਿੱਖ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਮਾਨਸਿਕਤਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਚਿਤਰ ਲਿਆ।
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ 1469 ਈ . ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1539 ਈ . ਤੱਕ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਸਰੀਰਕ ਤੌਰ ਤੇ ਵਿਚਰੇ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਕੁਲ ਆਯੂ 69 ਤੋਂ 70 ਸਾਲ ਦੇ ਦਰਮਿਆਨ ਹੋਈ ਹੈ। ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਘਰ ਘਰ ਲੱਗੀਆਂ ਤਸਵੀਰਾਂ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਉਮਰ 80 ਸਾਲ ਜਾਂ ਇਸ ਤੋਂ ਵੱਧ ਜਾਪਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਗੱਲ ਇਕੱਲੀ ਪੋਰਟਰੇਟ ਚਿਤਰਾਂ ਦੀ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਘਟਨਾਵਾਂ (ਸਾਖੀਆਂ) ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਚਿਤਰਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ। ਛਪੀ ਹੋਈ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਤਸਵੀਰ ਵੀ ਦੇਖੀ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਬਜ਼ੁਰਗ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਵੇਂਈ ਨਦੀ ਵਿਚ ਚੁੱਭੀ ਮਾਰਨ ਮਗਰੋਂ ਨਦੀ ਵਿਚ ਖੜ੍ਹੇ ਮੂਲ ਮੰਤਰ ਦਾ ਉਚਾਰਨ ਕਰਦੇ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਨ। ਇਹ ਕਿੰਨਾ ਵੱਡਾ ਜ਼ੁਲਮ ਤੇ ਬੇਅਦਬੀ ਹੈ, ਵੇਈਂ ਵਿਚ ਚੁੱਭੀ ਮਾਰਨ ਵਾਲੀ ਘਟਨਾ ਸਮੇਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਉਮਰ 18 ਤੋਂ 28 ਸਾਲ ਦੇ ਦਰਮਿਆਨ ਸੀ। ਅਜਿਹੇ ਚਿਤਰ ਉਹਨਾਂ ਅਸ਼ਲੀਲ ਫਿਲਮਾਂ ਜਾਂ ਗੀਤਾਂ ਦੇ ਵੀਡੀਓਜ਼ ਵਾਂਗ ਹਨ ਜਿੰਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਿਰਮਾਤਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ਹੈ।
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ (ਲੰਮੀ ਯਾਤਰਾ) 28 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ 1497 ਈ . ਨੂੰ ਅਰੰਭ ਕੀਤੀ ਜੋ 40 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ 1509 ਈ . ਨੂੰ ਸਮਾਪਤ ਹੋਈ। ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਆਪ ਨੇ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਧਾਰਮਿਕ ਅਸਥਾਨਾਂ ਤੇ ਉਚੇਚੇ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਨਿਰਾਰਥਕ ਰੀਤਾਂ, ਰਸਮਾਂ, ਮਨੌਤਾਂ, ਮਰਿਯਾਦਾਵਾਂ ਅਤੇ ਵਹਿਮਾਂ-ਭਰਮਾਂ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਪੜਾਅ ਕਰੂਕਸ਼ੇਤਰ, ਹਰਿਦੁਆਰ, ਦਿੱਲੀ, ਮਥਰਾ, ਬਿੰਦਰਾਬਨ, ਅਯੁੱਧਿਆ, ਬਨਾਰਸ, ਗਯਾ, ਢਾਕਾ, ਕਲਕੱਤਾ, ਜਗਨ ਨਾਥ ਪੁਰੀ ਆਦਿ ਸਨ। ਕਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਵਿਖੇ ਵੈਸ਼ਨਵ ਪੰਡਤਾਂ ਦੁਆਰ ਮਾਸ ਖਾਣ ਸਬੰਧੀ ਛੇੜੀ ਚਰਚਾ ਦਾ ਉਤਰ ਦਿੰਦਿਆਂ ਆਪ ਨੇ ਕਿਹਾ:
ਮਾਸੁ ਮਾਸੁ ਕਰਿ ਮੂਰਖੁ ਝਗੜੇ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਨਹੀ ਜਾਣੈ।
ਕਉਣੁ ਮਾਸੁ ਕਉਣੁ ਸਾਗੁ ਕਹਾਵੈ ਕਿਸੁ ਮਹਿ ਪਾਪ ਸਮਾਣੇ।
ਗੈਂਡਾ ਮਾਰਿ ਹੋਮ ਜਗ ਕੀਏ ਦੇਵਤਿਆ ਕੀ ਬਾਣੇ।
ਮਾਸੁ ਛੋਡਿ ਬੈਸਿ ਨਕੁ ਪਕੜਹਿ ਰਾਤੀ ਮਾਣਸ ਖਾਣੇ।
ਇਸ ਉਪਰੰਤ ਪਿੱਤਰ ਪੂਜਾ ਲਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਹਰਿਦੁਆਰ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚਕੇ ਆਪ ਨੇ ਪਿੱਤਰ ਪੂਜਾ ਸਬੰਧੀ ਪੰਡਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਫੈਲਾਏ ਭਰਮ ਜਾਲ ਪ੍ਰਤੀ ਵਿਅੰਗਾਤਮਕ ਅਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਟਿੱਪਣੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ:
ਜੇ ਮੋਹਾਕਾ ਘਰੁ ਮੁਹੈ ਘਰੁ ਮੁਹਿ ਪਿਤਰੀ ਦੇਇ।
ਅਗੈ ਵਸਤੁ ਸਿਞਾਣੀਐ ਪਿਤਰੀ ਚੋਰ ਕਰੇਇ।
ਵਢੀਅਹਿ ਹਥ ਦਲਾਲ ਕੇ ਮੁਸਫੀ ਏਹ ਕਰੇਇ।
ਨਾਨਕ ਅਗੈ ਸੋ ਮਿਲੈ ਜਿ ਖਟੇ ਘਾਲੇ ਦੇਇ।
ਇਸ ਸਥਾਨ ਨਾਲ ਜੁੜੀ ਸਾਖੀ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਚੜ੍ਹਦੀ ਵੱਲ ਨੂੰ ਮੂੰਹ ਕਰਕੇ ਪਿੱਤਰਾਂ ਤੱਕ ਪਾਣੀ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਦਾ ਮਖ਼ੌਲ ਉਡਾਉਂਦਿਆਂ ਲਹਿੰਦੇ ਵੱਲ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਖੇਤਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦਾ ਨਾਟਕ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਘਟਨਾ ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਣ ਵਾਲੇ ਬਹੁਤੇ ਚਿਤਰਾਂ ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਚਿੱਟੀ ਦਾੜ੍ਹੀ ਵਾਲੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਵਜੋਂ ਦਰਸਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਜਦ ਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਉਮਰ 28-29 ਸਾਲ ਦੀ ਸੀ।
ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਦੇ ਕਰਮ ਕਾਂਡਾਂ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸਥਾਨ ਕਾਂਸ਼ੀ (ਬਨਾਰਸ) ਵਿਖੇ ਪੰਡਤ ਚਤੁਰ ਦਾਸ ਨਾਲ ਚਰਚਾ ਹੋਈ। ਚਤੁਰ ਦਾਸ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਹੇ ਨਾਨਕ, ਤੇਰੇ ਪਾਸ ਸਾਲਗ੍ਰਾਮ ਨਹੀਂ, ਤੁਲਸੀ ਦੀ ਮਾਲਾ ਨਹੀਂ, ਸਿਮਰਣੀ ਨਹੀਂ, ਜਨੇਊ ਨਹੀਂ ਅਤੇ ਮੱਥੇ ਚੰਦਨ ਦਾ ਟਿੱਕਾ ਵੀ ਨਹੀਂ; ਕਿਵੇਂ ਮੰਨਿਆਂ ਜਾਏ ਕਿ ਤੂੰ ਰੱਬ ਦਾ ਭਗਤ ਹੈਂ? ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇ ਉਤਰ ਸਨ:
ਸਾਲ ਗ੍ਰਾਮ ਬਿਪ ਪੂਜਿ ਮਨਾਵਹੁ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਤੁਲਸੀ ਮਾਲਾ।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਬੇੜਾ ਬਾਂਧਹੁ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਦਇਆਲਾ।
ਕਾਇਆ ਬ੍ਰਹਮਾ ਮਨੁ ਹੈ ਧੋਤੀ। ਗਿਆਨੁ ਜਨੇਊ ਧਿਆਨੁ ਕੁਸਪਾਤੀ।
ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਜਸੁ ਜਾਚਉ ਨਾA। ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬ੍ਰਹਮਿ ਸਮਾਉ।
ਪਾਂਡੇ ਐਸਾ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੁ। ਨਾਮੇ ਸੁਚਿ ਨਾਮੋ ਪੜਉ ਨਾਮੇ ਚਜੁ ਆਚਾਰੁ।
ਕਾਂਸ਼ੀ ਦੇ ਪੰਡਿਆਂ ਵਲੋਂ ਉਠਾਏ ਗਏ ਸਵਾਲਾਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਇਥੇ ਹੀ ਆਪ ਨੇ Ḕਦੱਖਣੀ ਓਅੰਕਾਰ' ਨਾਂ ਦੀ ਲੰਮੀ ਬਾਣੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ। ਇਸ ਬਾਣੀ ਦੀਆਂ 54 ਪਉੜੀਆਂ ਹਨ।
ਗੁਰੂ ਜੀ ਬਨਾਰਸ ਤੋਂ ਗਯਾ ਪਹੁੰਚੇ। ਗਯਾ ਵਿਖੇ ਪੰਡਿਆਂ ਨੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪਿਤਰਾਂ ਦੀ ਮੁਕਤੀ ਲਈ ਪਿੰਡ ਭਰਾਉਣ ਅਤੇ ਦੀਵੇ ਬਾਲਣ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਕੀਤੀ। ਆਪ ਨੇ ਪ੍ਰੇਮ ਅਤੇ ਦਲੀਲ ਨਾਲ ਇਸ ਵਹਿਮ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ:
ਦੀਵਾ ਮੇਰਾ ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਦੁਖੁ ਵਿਚਿ ਪਾਇਆ ਤੇਲ। ਉਨਿ ਚਾਨਣਿ ਓਹੁ ਸੋਖਿਆ ਚੂਕਾ ਜਮ ਸਿਉ ਮੇਲੁ।
ਲੋਕਾ ਮਤ ਕੋ ਫਕੜਿ ਪਾਇ। ਲਖ ਮੜਿਆ ਕਰਿ ਏਕਠੇ ਏਕ ਰਤੀ ਲੇ ਭਾਹਿ।ਰਹਾA।
ਪਿੰਡੁ ਪਤਲਿ ਮੇਰੀ ਕੇਸਉ ਕਿਰਿਆ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾਰੁ। ਐਥੈ ਓਥੈ ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਏਹੁ ਮੇਰਾ ਆਧਾਰ।
ਗੰਗ ਬਨਾਰਸਿ ਸਿਫਤਿ ਤੁਮਾਰੀ ਨਾਵੈ ਆਤਮ ਰਾਉ।ਸਚਾ ਨਾਵਣੁ ਤਾਂ ਥੀਐ ਜਾਂ ਅਹਿਨਿਸਿ ਲਾਗੈ ਭਾA।
ਇਕ ਲੋਕੀ ਹੋਰੁ ਛਮਿਛਰੀ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਵਟਿ ਪਿੰਡੁ ਖਾਇ। ਨਾਨਕ ਪਿੰਡੁ ਬਖਸੀਸ ਕਾ ਕਬਹੂੰ ਨਿਖੂਟਸਿ ਨਾਹਿ।
ਬਿੰਦਰਾਬਨ, ਬਨਾਰਸ, ਅਤੇ ਗਯਾ ਦੇ ਅਸਥਾਨਾਂ ਤੇ ਪੰਡਿਆਂ ਨੂੰ ਧਰਮ ਦਾ ਸੱਚਾ ਮਾਰਗ ਸਮਝਾਉਣ ਵਾਲੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਕੋਈ ਬਿਰਧ ਬਾਬੇ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ 35 ਸਾਲ ਤੋਂ ਘੱਟ ਉਮਰ ਦੇ ਗੱਭਰੂ ਸਨ ਜੋ ਗਯਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਢਾਕਾ, ਚਿਟਾਗਾਂਗ, ਆਸਾਮ ਤੇ ਬਰਮਾ ਵਲੋਂ ਚੱਕਰ ਕੱਢ ਕੇ ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ਪਹੁੰਚੇ।ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ਵਿਖੇ ਵਿਸ਼ਨੂੰ ਦੀ ਮੂਰਤੀ ਦੀ ਪੂਜਾ ਹੁੰਦੀ ਸੀ। ਪੁਜਾਰੀਆਂ ਨੇ ਮੂਰਤੀ ਨੂੰ ਚੌਰ ਕਰਦਿਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਥਾਲੀ ਵਿਚ ਦੀਵੇ ਬਾਲ ਕੇ, ਧੂਫ਼, ਪੁਸ਼ਪ ਆਦਿ ਸੁਗੰਧੀ ਵਾਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਸਹਿਤ ਆਰਤੀ ਉਤਾਰੀ। ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਵਲੋਂ ਇਸ ਰਸਮ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਾ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਪੁਜਾਰੀਆਂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਬੁਰਾ ਮਨਾਇਆ। ਉਸ ਸਮੇਂ ਆਪ ਨੇ ਸਰਬ ਵਿਆਪਕ ਈਸ਼ਵਰ ਦੀ ਸਮੁੱਚੀ ਕੁਦਰਤ ਰਾਹੀਂ ਲਗਾਤਾਰ ਹੋ ਰਹੀ ਵਿਸ਼ਾਲ ਬ੍ਰਹਿਮੰਡੀ ਆਰਤੀ ਦਾ ਕਾਵਿ - ਚਿਤਰ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ:
ਗਗਨ ਮੈ ਥਾਲੁ ਰਵਿ ਚੰਦੁ ਦੀਪਕ ਬਨੇ ਤਾਰਿਕਾ ਮੰਡਲ ਜਨਕ ਮੋਤੀ।
ਧੂਪੁ ਮਲਆਨਲੋ ਪਵਣੁ ਚਵਰੋ ਕਰੇ ਸਗਲ ਬਨਰਾਇ ਫੂਲੰਤ ਜੋਤੀ।
ਕੈਸੀ ਆਰਤੀ ਹੋਇ। ਭਵ ਖੰਡਨਾ ਤੇਰੀ ਆਰਤੀ। ਅਨਹਤਾ ਸਬਦ ਵਾਜੰਤ ਭੇਰੀ।ਰਹਾਉ।
ਸਹਸ ਤਵ ਨੈਨ ਨਨ ਨੈਨ ਹਹਿ ਤੋਹਿ ਕਉ ਸਹਸ ਮੂਰਤਿ ਨਨਾ ਏਕ ਤੋਹੀ।
ਸਹਸ ਪਦ ਬਿਮਲ ਨਨ ਏਕ ਪਦ ਗੰਧ ਬਿਨੁ ਸਹਸ ਤਵ ਗੰਧ ਇਵ ਚਲਤ ਮੋਹੀ।
ਸਭ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਜੋਤਿ ਹੈ ਸੋਇ। ਤਿਸ ਦੈ ਚਾਨਣਿ ਸਭ ਮਹਿ ਚਾਨਣੁ ਹੋਇ।
ਗੁਰ ਸਾਖੀ ਜੋਤਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ। ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੁ ਆਰਤੀ ਹੋਇ।
ਹਰਿ ਚਰਣ ਕਵਲ ਮਕਰੰਦ ਲੋਭਿਤ ਮਨੋ ਅਨਦਿਨੋ ਮੋਹਿ ਆਹੀ ਪਿਆਸਾ।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਜਲੁ ਦੇਹਿ ਨਾਨਕ ਸਾਰਿੰਗ ਕਉ ਹੋਇ ਜਾ ਤੇ ਤੇਰੈ ਨਾਇ ਵਾਸਾ।
ਇਸ ਘਟਨਾ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ ਲਗਪਗ 36-37 ਸਾਲ ਦੀ ਸੀ। ਪਰ ਇਸ ਘਟਨਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਤ ਬਹੁਤੇ ਚਿਤਰਾਂ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਬਿਰਧ ਰੂਪ ਵਿਚ ਦਰਸਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ।
ਦੂਸਰੀ ਉਦਾਸੀ 41 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ 1510 ਈ . ਨੂੰ ਅਰੰਭ ਅਤੇ 46 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ 1515 ਈ . ਨੂੰ ਸਮਾਪਤ ਹੋਈ। ਦੱਖਣ ਦਿਸ਼ਾ ਦੀ ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਜਾਣ ਸਮੇਂ ਸਰਸਾ, ਬੀਕਾਨੇਰ, ਅਜਮੇਰ, ਇੰਦੌਰ, ਉਜੈਨ, ਬਿਦਰ, ਹੈਦਰਾਬਾਦ, ਮਦਰਾਸ, ਪਾਂਡੀਚਰੀ ਅਤੇ ਲੰਕਾ ਮੁੱਖ ਟਿਕਾਣੇ ਸਨ। ਵਾਪਸੀ ਸਮੇਂ ਸੋਮਨਾਥ, ਦੁਆਰਕਾ, ਕੱਛ, ਮਾਂਡਵੀ ਅਤੇ ਬਹਾਵਲਪੁਰ ਮੁੱਖ ਪੜਾਅ ਸਨ। ਇਹ ਉਦਾਸੀ ਜੈਨ ਅਤੇ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੇ ਅਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਉਦਾਸੀ ਕਰਕੇ ਜਾਣੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਸਰੋਹੀ ਅਤੇ ਮਾਉਂਟਆਬੂ ਦੇ ਅਸਥਾਨਾਂ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜੈਨ ਸਾਧੂ ਮੱਠਾਂ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ। ਇਥੇ ਅਨ੍ਹਭੀ ਨਾਂ ਦੇ ਜੈਨ ਮੁਖੀ ਨਾਲ ਆਪ ਦੀ ਚਰਚਾ ਹੋਈ। ਗੁਰੁ ਜੀ ਨੇ ਜੈਨ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨਿਰਾਰਥਕ ਰਸਮਾਂ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਸੁਚੱਜੇ ਦੀ ਬਜਾਏ ਕੁਚੀਲ ਬਣਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ:
ਸਿਰੁ ਖੋਹਾਇ ਪੀਅਹਿ ਮਲਵਾਣੀ ਜੂਠਾ ਮੰਗਿ ਮੰਗਿ ਖਾਹੀ।
ਫੋਲਿ ਫਦੀਹਤਿ ਮੁਹਿ ਲੈਨਿ ਭੜਾਸਾ ਪਾਣੀ ਦੇਖਿ ਸਗਾਹੀ।
ਭੇਡਾ ਵਾਗੀ ਸਿਰੁ ਖੋਹਾਇਨਿ ਭਰੀਅਨਿ ਹਥ ਸੁਆਹੀ।
ਮਾਊ ਪੀਊ ਕਿਰਤੁ ਗਵਾਇਨਿ ਟਬਰ ਰੋਵਨਿ ਧਾਹੀ।
ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਮੱਤ ਦੇ ਦਬਦਬੇ ਕਾਰਨ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਭਾਰਤ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲ ਕੇ ਚੀਨ, ਜਪਾਨ, ਬਰਮਾ ਅਤੇ ਲੰਕਾ ਵਿਚ ਫ਼ੈਲ ਚੁੱਕਾ ਸੀ। ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਆਪ ਉਚੇਚੇ ਤੌਰ ਤੇ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੇਂਦਰ ਲੰਕਾ ਵਿਚ ਗਏ। ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਸ਼ੁਭ ਕਰਮਾਂ ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ।Ḕਅਸ਼ਟਾਂਗ ਮਾਰਗ' ਭਾਵ ਅੱਠ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਰਮਾਂ ਦਾ ਪਾਲਣ ਨਿਰਵਾਣ ਦੀ ਪ੍ਰਪਤੀ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਮੰਨਿਆਂ ਗਿਆ ਹੈ। ਪਰ ਬੋਧੀ ਲੋਕ ਈਸ਼ਵਰ ਦੀ ਹਸਤੀ ਅਤੇ ਹੋਂਦ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰੀ ਹਨ। ਉਨਾਂ ਮੁਤਾਬਕ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਮਿਲਾਪ ਨਾਲ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਹੋਂਦ ਵਿਚ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹਨਾਂ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਨਿਖੇੜ ਨਾਲ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਪਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਬੋਧ-ਅਚਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਸੰਵਾਦ ਰਚਾਉਂਦਿਆਂ ਸਾਰੇ ਤੱਤਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਹੁਕਮ ਅਤੇ ਨੇਮ ਵਿਚ ਬੱਝੇ ਹੋਏ ਐਲਾਨਿਆਂ। ਤੱਤਾਂ ਦੀ ਇਸ ਅਧੀਨਤਾ ਦੇ ਅਧਾਰ ਤੇ ਉਹਨਾਂ Ḕਨਿਰਭਉ ਪ੍ਰਭੂ' ਦੇ ਹੁਕਮ ਤਹਿਤ ਚੱਲਣ ਵਾਲੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਹੀ ਸਫ਼ਲ ਅਤੇ ਸੁੱਚਾ ਜੀਵਨ ਕਿਹਾ:
ਭੈ ਵਿਚਿ ਪਵਣੁ ਵਹੈ ਸਦਵਾਉ। ਭੈ ਵਿਚਿ ਚਲਹਿ ਲਖ ਦਰੀਆਉ।
ਭੈ ਵਿਚਿ ਅਗਨਿ ਕਢੈ ਵੇਗਾਰਿ। ਭੈ ਵਿਚਿ ਧਰਤੀ ਦਬੀ ਭਾਰਿ।
ਭੈ ਵਿਚਿ ਇੰਦੁ ਫਿਰੈ ਸਿਰ ਭਾਰਿ। ਭੈ ਵਿਚਿ ਰਾਜਾ ਧਰਮ ਦੁਆਰੁ।
ਭੈ ਵਿਚਿ ਸੂਰਜੁ ਭੈ ਵਿਚਿ ਚੰਦੁ। ਕੋਹ ਕਰੋੜੀ ਚਲਤ ਨ ਅਮਤੁ।
ਭੈ ਵਿਚਿ ਸਿਧ ਬੁਧ ਸੁਰ ਨਾਥ। ਭੈ ਵਿਚਿ ਆਡਾਣੇ ਆਕਾਸ।
ਭੈ ਵਿਚਿ ਜੋਧ ਮਹਾਬਲ ਸੂਰ। ਭੈ ਵਿਚਿ ਆਵਹਿ ਜਾਵਹਿ ਪੂਰ।
ਸਗਲਿਆ ਭਉ ਲਿਖਿਆ ਸਿਰਿ ਲੇਖੁ। ਨਾਨਕ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਸਚੁ ਏਕੁ।
ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੂਸਰੀ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਨੌਜਵਾਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਨੇ ਜੈਨੀ ਅਤੇ ਬੋਧੀ ਅਚਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਵਾਰਤਾਲਾਪ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਸਿਧਾਂਤ ਨੂੰ ਨਿਖੜਵੇਂ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ।
ਤੀਸਰੀ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਆਪ ਨੇ ਉਤਰ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿਚ ਜੰਮੂ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਗੜ੍ਹਵਾਲ, ਬਦਰੀਨਾਥ, ਤਿੱਬਤ, ਭੂਟਾਨ ਤੇ ਨੇਪਾਲ ਆਦਿ ਇਲਾਕੇ ਗਾਹੇ। ਉਤਰੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਉਸ ਸਮੇਂ ਜੋਗ ਮੱਤ ਦਾ ਜ਼ੋਰ ਸੀ। ਇਹਨਾਂ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿਚ ਸਿੱਧਾਂ ਜੋਗੀਆਂ ਦੇ ਟਿਕਾਣੇ ਸਨ। ਜੋਗੀ ਸੁਰਤਿ ਨੂੰ ਤਾੜੇ ਲਾ ਕੇ ਅਨਹਦ ਸ਼ਬਦ ਸੁਣਨ ਲਈ ਮਦ (ਸ਼ਰਾਬ) ਪੀਂਦੇ ਸਨ। ਜਦ ਗੁਰੂ ਜੀ ਸੁਮੇਰ ਪਰਬਤ ਤੇ ਸਿੱਧਾਂ ਪਾਸ ਪਹੁੰਚੇ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਆਪ ਨੂੰ ਪੀਣ ਲਈ ਮਦ ਦਾ ਪਿਆਲਾ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ। ਜਦ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਕੀ ਪਾਇਆ ਹੈ ਤਾਂ ਸਿੱਧਾਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਬੁਰੀ ਚੀਜ਼ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਗੁੜ ਅਤੇ ਧਾਵੈ ਦੇ ਫੁੱਲ ਹਨ। ਉਥੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦੀ ਲੋਰ ਅਤੇ ਮਸਤੀ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੀ ਮਦ ਨੂੰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਰਿਭਾਸ਼ਤ ਕੀਤਾ:
ਗੁੜੁ ਕਰਿ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਕਰਿ ਧਾਵੈ ਕਰਿ ਕਰਣੀ ਕਸੁ ਪਾਈਐ।
ਭਾਠੀ ਭਵਨੁ ਪ੍ਰੇਮ ਕਾ ਪੋਚਾ ਇਤੁ ਰਸਿ ਅਮਿਉ ਚੁਆਈਐ।
ਬਾਬਾ ਮਨੁ ਮਤਵਾਰੋ ਨਾਮ ਰਸੁ ਪੀਵੈ ਸਹਜ ਰੰਗ ਰਚਿ ਰਹਿਆ।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਬਨੀ ਪ੍ਰੇਮ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਸਬਦੁ ਅਨਾਹਦ ਗਹਿਆ। ਰਹਾਉ ।
ਪੂਰਾ ਸਾਚੁ ਪਿਆਲਾ ਸਹਜੇ ਤਿਸਹਿ ਪੀਆਏ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਾ ਵਾਪਾਰੀ ਹੋਵੈ ਕਿਆ ਮਦਿ ਛੂਛੈ ਭਾਉ ਧਰੇ।
ਗੁਰ ਕੀ ਸਾਖੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਪੀਵਤ ਹੀ ਪਰਵਾਣੁ ਭਇਆ।
ਦਰ ਦਰਸਨ ਕਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਹੋਵੈ ਮੁਕਤਿ ਬੈਕੁੰਠੈ ਕਰੈ ਕਿਆ।
ਸਿਫਤੀ ਰਤਾ ਸਦ ਬੈਰਾਗੀ ਜੂਐ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰੈ।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਣਿ ਭਰਥਰਿ ਜੋਗੀ ਖੀਵਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰੈ।
ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਗੋਰਖ, ਚਰਪਟ, ਮਛੰਦਰ ਅਤੇ ਲੋਹਾਰੀਪਾ ਆਦਿ ਸਿੱਧਾਂ ਨਾਲ ਹੋਈ ਵਾਰਤਾਲਾਪ ਦੇ ਅਧਾਰਤ Ḕਸਿਧ ਗੋਸ਼ਟਿ' ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ। ਬੁੱਧੀ ਅਤੇ ਜੁਗਤੀ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਤਾ ਵਾਲੀ ਇਸ ਲੰਮੀ ਅਤੇ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਕਾਵਿ ਰਚਨਾ ਦੇ 73 ਬੰਦ ਹਨ। ਜੋਗ ਮੱਤ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਾਰਨ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸਾਰਨ ਵਾਲੇ ਇਹਨਾਂ ਘਾਗ ਦਿਮਾਗਾਂ ਨਾਲ ਸੰਵਾਦ ਰਚਾਉਣ ਵਾਲਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਕੋਈ ਬਿਰਧ ਬਾਬਾ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਉਮਰ ਕੇਵਲ 47 ਸਾਲ ਦੇ ਆਸ ਪਾਸ ਸੀ। ਕਾਵਿ- ਪੁਸਤਕ Ḕਅਸੀਂ ਨਾਨਕ ਦੇ ਕੀ ਲਗਦੇ ਹਾਂ' ਛਾਪਣ ਸਮੇਂ ਮੇਰੀ ਇਹ ਰੀਝ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਦੀ ਜਿਲਦ ਤੇ ਸਿੱਧਾਂ ਨਾਲ ਵਾਰਤਾਲਾਪ ਕਰਦੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦਾ ਚਿਤਰ ਛਾਪਿਆ ਜਾਏ। ਪਰ ਵਾਹ ਜਹਾਨ ਦੀ ਲਾ ਛੱਡੀ, ਸਿੱਧ ਗੋਸ਼ਟ ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਂਦੀ ਅਜਿਹੀ ਕੋਈ ਤਸਵੀਰ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੀ ਉਮਰ 47 ਸਾਲ ਦੇ ਆਸ ਪਾਸ ਹੋਵੇ। ਚਿਤਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਸੁਮੇਰ ਪਰਬਤ ਤੇ ਭ੍ਰਮਣ ਕਰਦੇ ਜਾਂ ਸਿੱਧਾਂ ਨਾਲ ਚਰਚਾ ਕਰਦੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਨੂੰ ਬਿਰਧ ਬਾਬੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹੀ ਚਿਤਰਿਆ ਹੈ।
ਚੌਥੀ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪੱਛਮ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿਚ ਸਥਿਤ ਇਸਲਾਮ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਅਸਥਾਨਾਂ ਤੇ ਗਏ। ਮੁਸਲਮਾਨੀ ਵੇਸ ਧਾਰਨ ਕਰਕੇ ਕੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਤੋਂ ਸਿੰਧ ਦੇ ਰਸਤੇ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਹਾਜੀਆਂ ਨਾਲ ਮੱਕੇ ਪਹੁੰਚੇ। ਹਾਜੀਆਂ ਅਤੇ ਮੱਕੇ ਦੇ ਮੌਲਵੀਆਂ ਨੇ ਪਛਾਣ ਕਰ ਲਈ ਕਿ ਆਪ ਮੁਸਲਮਾਨ ਨਹੀਂ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਅਤੇ ਇਸਲਾਮ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸ ਨੂੰ ਉੱਤਮ ਮੰਨਦੇ ਹੋ, ਤਦ:
ਬਾਬਾ ਆਖੇ ਹਾਜੀਆਂ ਸ਼ੁਭ ਅਮਲਾਂ ਬਾਝੋਂ ਦੋਵੇਂ ਰੋਈ।
ਹਿੰਦੂ ਮੁਸਲਮਾਨ ਦੋਇ ਦਰਗਹਿ ਅੰਦਰ ਲੈਨ ਨਾ ਢੋਈ।
ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਆਪ ਨੇ ਇਸਲਾਮੀ ਚਿੰਨ੍ਹਾਂ, ਪ੍ਰਤੀਕਾਂ, ਸੰਕੇਤਾਂ ਅਤੇ ਮੁਹਾਵਰੇ ਵਾਲੀ ਬਾਣੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਸੁਚੱਜੇ ਅਮਲਾਂ ਵਾਲੇ ਜੀਵਨ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਕੀਤੀ। ਮਿਸਾਲ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ:
ਯਕ ਅਰਜ ਗੁਫਤਮ ਪੇਸਿ ਤੋ ਦਰ ਗੋਸ ਕੁਨ ਕਰਤਾਰ।
ਹਕਾ ਕਬੀਰ ਕਰੀਮ ਤੂ ਬੇਐਬ ਪਰਵਦਗਾਰ।
ਦੁਨੀਆ ਮੁਕਾਮੇ ਫਾਨੀ ਤਹਕੀਕ ਦਿਲ ਦਾਨੀ।
ਮਮ ਸਰ ਮੂਇ ਅਜਰਾਈਲ ਗਿਰਫਤਹ ਦਿਲ ਹੇਚਿ ਨ ਦਾਨੀ।ਰਹਾਉ।
ਜਨ ਪਿਸਰ ਪਦਰ ਬਿਰਾਦਰਾਂ ਕਸ ਨੇਸ ਦਸਤੰਗੀਰ।
ਆਖਿਰ ਬਿਅਫਤਮ ਕਸ ਨ ਦਾਰਦ ਚੂੰ ਸਵਦ ਤਕਬੀਰ।
ਸਬ ਰੋਜ ਗਸਤਮ ਦਰ ਹਵਾ ਕਰਦੇਮ ਬਦੀ ਖਿਆਲ।
ਗਾਹੇ ਨ ਨੇਕੀ ਕਾਰ ਕਰਦਮ ਮਮ e_Øੀ ਚਿਨੀ ਅਹਵਾਲ।
ਬਦਬਖਤ ਹਮ ਚੁ ਬਖੀਲ ਗਾਫਿਲ ਬੇਨਜਰ ਬੇਬਾਕ।
ਨਾਨਕ ਬੁਗੋਯਦ ਜਨੁ ਤੁਰਾ ਤੇਰੇ ਚਾਕਰਾਂ ਪਾ ਖਾਕ।
ਮੱਕੇ ਤੇ ਮਦੀਨੇ ਜਾਣ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਮਰ 48-49 ਸਾਲ ਦੀ ਸੀ। ਪਰ ਮੱਕੇ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਚਿਤਰਾਂ ਵਿਚ ਉਨਾਂ ਨੂੰ ਏਨੀ ਘੱਟ ਉਮਰ ਦੇ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਬਿਰਧ ਬਾਬੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹੀ ਦਿਖਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਮੱਕੇ ਤੇ ਮਦੀਨੇ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਆਪ ਬਗਦਾਦ, ਮਿਸਰ, ਤੁਰਕੀ, ਇਰਾਨ ਅਤੇ ਅਫਗਾਨਿਸਤਾਨ ਤੋਂ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ ਰਾਹੀਂ 1521 ਵਿਚ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਪਰਤੇ। ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ ਵਿਖੇ ਅੱਜ ਕੱਲ੍ਹ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾ ਸਾਹਿਬ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਵਲੀ ਕੰਧਾਰੀ ਵਾਲੀ ਸਾਖੀ ਜੁੜੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਵਲੀ ਕੰਧਾਰੀ ਦੀ ਹਊਮੈ ਦੇ ਪਹਾੜ ਨੂੰ ਪੰਜਾ ਲਾਉਣ ਵਾਲੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਵੀ ਕੋਈ ਬੁੱਢੇ ਬਾਬੇ ਨਹੀਂ ਸਨ, ਸਗੋਂ ਉਦੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਉਮਰ ਤਾਂ 51 ਸਾਲ ਦੇ ਕਰੀਬ ਸੀ। ਪਰ ਇਸ ਸਾਖੀ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਕਿਸੇ ਚਿਤਰ ਵਿਚ ਵੀ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਏਨੀ ਘੱਟ ਉਮਰ ਦੇ ਨਹੀਂ ਦਿਖਾਇਆ ਗਿਆ।
ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਲੰਮੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ 51 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਮੁਕੰਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ। ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਬਾਣੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਵੀ ਇਹਨਾਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੌਰਾਨ ਹੀ ਹੋਈ। ਇਹਨਾਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੌਰਾਨ ਵਾਪਰੀਆ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਚਿਤਰਾਂ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਉਮਰ ਕਿਸੇ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਵੀ 51 ਸਾਲ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਨਹੀਂ ਜਾਪਣੀ ਚਾਹੀਦੀ। ਆਖਰੀ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ ਜੀ ਦਾ ਅਕਾਲ ਚਲਾਣਾ ਹੋਇਆ ਦੱਸਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ ਜਿੰਨਾ ਚਿਰ ਇਕੱਠੇ ਵਿਚਰੇ ਉਸ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਮਰ 28 ਤੋਂ 51 ਸਾਲ ਦੇ ਦਰਮਿਆਨ ਸੀ। ਪਰ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠੇ ਦਰਸਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਚਿਤਰਾਂ ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਬੁੱਢੇ ਬਾਬੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹੀ ਦਰਸਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ।ਇਕ ਗੱਲ ਹੋਰ, ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੌਰਾਨ ਤਹਿ ਕੀਤੇ ਕੁਲ ਪੈਂਡੇ ਨੂੰ ਦੇਖਿਆ ਜਾਏ ਤਾਂ ਪਤਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਔਸਤਨ 25 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਪੈਦਲ ਪੈਂਡਾ ਤਹਿ ਕੀਤਾ। ਹਮੇਸ਼ਾ ਚੰਗਾ ਚੋਸਾ ਖਾਣ ਦਾ ਵੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਕਿਸੇ ਵੇਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਦਾ ਮਿਲਦਾ ਹੋਏਗਾ ਤੇ ਕਿਸੇ ਵੇਲੇ ਨਹੀਂ ਵੀ ਮਿਲਦਾ ਹੋਏਗਾ। ਚਿੰਤਨਸ਼ੀਲ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਅਤੇ ਕਿਰਿਆਵੰਤ ਸਰੀਰ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਭਾਰ 50-60 ਕਿਲੋ ਦੇ ਕਰੀਬ ਹੀ ਹੋਏਗਾ। ਪਰ ਚਿਤਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਭਰਕਮ ਚਰਬੀਦਾਰ ਦੇਹ ਦੇ ਮਾਲਕ ਵਜੋਂ ਹੀ ਚਿਤਰਿਆ ਹੈ।
ਉਦਾਸੀਆਂ ਉਪਰੰਤ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ 1521 ਈ . ਵਿਚ ਏਮਨਾਬਾਦ (ਸੈਦਪੁਰ) ਜਾਣਾ ਹੋਇਆ। ਆਪ ਸਥਾਪਤ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਅਨੁਸਾਰ ਨੀਵੀਂ ਸਮਝੀ ਜਾਂਦੀ ਜਾਤ ਦੇ ਕਿਰਤੀ ਸਿੱਖ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਦੇ ਘਰ ਠਹਿਰੇ। ਲਾਲੋ ਦੀ ਕਿਰਤ ਨੂੰ ਵਡਿਆਉਂਦਿਆਂ ਅਤੇ ਕਿਰਤੀਆਂ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਉੱਚ ਜ਼ਾਤ ਦੇ ਭਾਗੋ ਦੇ ਅਭਿਮਾਨ ਨੂੰ ਝੰਜੋੜਦਿਆਂ ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਉਚਾਰਣ ਕੀਤਾ:
ਨੀਚਾ ਅੰਦਰਿ ਨੀਚ ਜਾਤਿ ਨੀਚੀ ਹੂ ਅਤਿ ਨੀਚੁ।
ਨਾਨਕੁ ਤਿਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਸਾਥਿ ਵਡਿਆ ਸਿਉ ਕਿਆ ਰੀਸ।
ਜਿਥੈ ਨੀਚ ਸਮਾਲੀਅਨਿ ਤਿਥੈ ਨਦਰਿ ਤੇਰੀ ਬਖਸੀਸ।
ਆਪ ਨੇ ਕਿਰਤ ਨੂੰ ਧਰਮ ਦਾ ਪਵਿੱਤਰ ਮਾਰਗ ਕਿਹਾ ਅਤੇ ਦੂਸਰਿਆਂ ਦੀ ਕਿਰਤ ਤੇ ਪਲਣ ਵਾਲੇ ਵੇਹਲੜਾਂ ਨੂੰ ਰੱਤ ਪੀਣੇ ਪਾਪੀ ਕਹਿ ਕੇ ਫਿਟਕਾਰਿਆ। ਇਸ ਘਟਨਾ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਮਰ 52 ਸਾਲ ਤੋਂ ਘੱਟ ਹੀ ਸੀ ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਚਿਤਰਾਂ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਵਡੇਰੀ ਉਮਰ ਦਾ ਦਰਸਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਇਹਨਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਬਾਬਰ ਕਾਬਲ ਤੋਂ ਚੱਲ ਕੇ ਹਿੰਦੋਸਤਾਨ ਦੇ ਪੱਛਮੀ ਹਿੱਸੇ ਵਿਚ ਕਾਬਜ਼ ਹੋਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਚੁੱਕਾ ਸੀ। ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਲੁੱਟਿਆ ਅਤੇ ਕੁੱਟਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਮਾਸੂਮ ਬੱਚਿਆਂ ਤੇ ਵੀ ਜ਼ੁਲਮ ਢਹਿ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਬੇਪਤੀ ਹੋ ਰਹੀ ਸੀ। ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਕਰੂਪ ਚਿਹਰੇ ਅਤੇ ਇਸ ਪ੍ਰਤੀ ਸਥਾਪਤ ਧਰਮਾਂ ਦੀ ਨਿਰਾਰਥਕ ਉਦਾਸੀਨਤਾ ਅਤੇ ਆਪ੍ਰਸੰਗਿਕਤਾ ਬਾਰੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦਾ ਕਾਵਿ - ਬਿਆਨ ਦੇਖੋ:
ਜੈਸੀ ਮੈ ਆਵੈ ਖਸਮ ਕੀ ਬਾਣੀ ਤੈਸੜਾ ਕਰੀ ਗਿਆਨੁ ਵੇ ਲਾਲੋ।
ਪਾਪ ਕੀ ਜੰਞ ਲੈ ਕਾਬਲਹੁ ਧਾਇਆ ਜੋਰੀ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਵੇ ਲਾਲੋ।
ਸਰਮੁ ਧਰਮੁ ਦੁਇ ਛਪਿ ਖਲੋਏ ਕੂੜੁ ਫਿਰੈ ਪਰਧਾਨੁ ਵੇ ਲਾਲੋ।
ਕਾਜੀਆ ਬਾਮਣਾ ਕੀ ਗਲ ਥਕੀ ਅਗਦੁ ਪੜੈ ਸੈਤਾਨੁ ਵੇ ਲਾਲੋ।
ਮੁਸਲਮਾਨੀਆ ਪੜਹਿ ਕਤੇਬਾ ਕਸਟ ਮਹਿ ਕਰਹਿ ਖੁਦਾਇ ਵੇ ਲਾਲੋ।
ਜਾਤਿ ਸਨਾਤੀ ਹੋਰਿ ਹਿਦਵਾਣੀਆ ਏਹਿ ਭੀ ਲੇਖੈ ਲਾਇ ਵੇ ਲਾਲੋ।
ਖੂਨ ਕੇ ਸੋਹਿਲੇ ਗਾਵੀਅਹਿ ਨਾਨਕ ਰਤੁ ਕਾ ਕੁੰਗੂ ਪਾਇ ਵੇ ਲਾਲੋ।
ਗੁਰੂ ਜੀ ਅਜੇ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਕੋਲ ਹੀ ਠਹਿਰੇ ਹੋਏ ਸਨ ਜਦ ਬਾਬਰ ਦੀਆਂ ਫੌਜਾਂ ਨੇ ਏਮਨਾਬਾਦ ਸ਼ਹਿਰ ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ। ਹਾਕਮਾਂ ਦੇ ਅਣਮਨੁੱਖੀ ਵਤੀਰੇ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਅੱਖੀਂ ਡਿੱਠਾ। 52 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਇਸ ਕਹਿਰ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਵਿਦਰੋਹੀ ਸੁਰ ਵਿਚ ਰੱਬ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਿਤ ਹੋਏ:
ਖੁਰਾਸਾਨ ਖਸਮਾਨਾ ਕੀਆ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੁ ਡਰਾਇਆ।
ਆਪੈ ਦੋਸੁ ਨ ਦੇਈ ਕਰਤਾ ਜਮੁ ਕਰਿ ਮੁਗਲੁ ਚੜਾਇਆ।
ਏਤੀ ਮਾਰ ਪਈ ਕਰਲਾਣੇ ਤੈਂ ਕੀ ਦਰਦੁ ਨ ਆਇਆ।
ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਉਮਰ (95 ਸਾਲ) ਦੇ ਹੋਏ ਹਨ। ਵਡੇਰੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਹੀ ਆਪ ਨੇ ਗ੍ਰੁਰੂ ਪਦਵੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ ਸੀ। ਪਰ ਆਪ ਦਾ ਫੁਰਮਾਨ ਹੈ:
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਢੇ ਕਦੇ ਨਾਹੀ ਜਿਨਾ ਅੰਤਰਿ ਸੁਰਤਿ ਗਿਆਨੁ।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਰਵਹਿ ਅੰਤਰਿ ਸਹਜ ਧਿਆਨੁ।
ਪਰ ਅਸੀਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਇਕ ਬੁੱਢੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਚਿਤਵ ਕੇ ਅੰਧੀ ਰਯਤਿ ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣੀ ਹੋਣ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਦੇ ਰਹੇ ਹਾਂ। ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਕੁਲ ਉਮਰ 42 ਸਾਲ ਦੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਸਾਡੇ ਮਨਾਂ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਇਕ ਨੌਜਵਾਨ ਸੂਰਬੀਰ ਵਾਲਾ ਤਸੱਵਰ ਹੈ। ਇਹ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਨੌਜਵਾਨੀ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਹੈ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਬਖਸ਼ੇ ਗਏ ਸਰੂਪ ਦੀ ਚਰਚਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਸਰੂਪ ਦੇ ਧਾਰਨੀ ਗੌਰਵ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਸਰੂਪ ਨੂੰ ਢਾਹ ਲੱਗਣ ਨੂੰ ਹੀ ਸਿੱਖੀ ਨੂੰ ਵੱਡਾ ਖਤਰਾ ਮੰਨਿਆਂ ਜਾਣ ਲੱਗਿਆ ਹੈ। ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ Ḕਪੰਥ ਦਰਦੀ' ਪਤਿਤਪੁਣੇ ਨੂੰ ਠੱਲਣ ਦੀਆਂ ਵਿਉਂਤਾਂ ਘੜਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਪੈਸਾ ਖਰਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਪਰ ਸਿੱਖੀ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਸਿਧਾਂਤਕਾਰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਨੇ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਚਾਰ ਅਤੇ ਵਿਹਾਰ ਨੂੰ ਸੁਚੱਜੇ ਜੀਵਨ ਦੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸ਼ਰਤਾਂ ਵਜੋਂ ਨਿਰਧਾਰਤ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਚਾਰਿਆ, ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਛਿਪਨ ਹੋਣ ਤੇ ਕੋਈ ਹਾਲ ਪਾਰਿਆ ਨਹੀਂ ਹੋ ਰਹੀ।
ਹੁਣ ਜਦ ਅਸੀਂ ਬੁਢਾਪੇ ਨੂੰ ਸੂਝ, ਸਿਆਣਪ, ਗਿਆਨ ਅਤੇ ਵਡੱਪਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਬੇਵਸੀ, ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਅਤੇ ਅਪ੍ਰਸੰਗਿਤਾ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ ਤਾਂ ਲੋੜ ਹੈ ਕਿ ਨੁਕਰੇ ਲੱਗੇ ਬਿਰਧ ਨਾਨਕ ਦੀ ਬਜਾਏ ਗੱਭਰੂ ਨਾਨਕ ਨੂੰ ਕੇਂਦਰ ਵਿਚ ਲਿਆਈਏ। ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਬੁੱਢਿਆਂ ਦੀ ਸ਼ਰਧਾ ਲਈ ਆਸਰੇ ਮਾਤਰ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਸਰੋਤ ਵੀ ਹੋਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ। ਜੇ ਅਸੀਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨੂੰ ਅੱਜ ਵੀ ਪ੍ਰਸੰਗਿਕ ਮੰਨਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਚਾਰੀ ਗਈ ਜੀਵਨ ਸ਼ੈਲੀ ਨੂੰ ਜਿਉਣ ਜੋਗੀ ਮੰਨਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਸਥਾਪਤ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਬਿਰਧ ਨਾਨਕ ਦੇ ਜਾਅਲੀ ਤਸੱਵਰ ਨੂੰ ਬੇਕਿਰਕੀ ਨਾਲ ਤੋੜਨਾ ਪਏਗਾ। ਚਿਤਰਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਬਜ਼ਾਰੂ ਪਹੁੰਚ ਤਿਲਾਂਜ ਕੇ ਇਤਿਹਾਸਕ ਅਤੇ ਸਿਧਾਂਤਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਅਪਨਾਉਣ ਦਾ ਜੇਰਾ ਕਰਨਾ ਪਏਗਾ। ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਨੌਜਵਾਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਨੂੰ ਲੋਕ ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸੁੰਦਰਤਾ ਦੇ ਮਿਸਵਰਡੀ ਪ੍ਰਤੀਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦੇ ਸੱਚ ਨੂੰ ਖੋਜਣ ਅਤੇ ਪ੍ਰਗਟਾਉਣ ਲਈ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨੀ ਪਏਗੀ। ਘਰਾਂ, ਦਫ਼ਤਰਾਂ, ਦੁਕਾਨਾਂ, ਚਿਤਰ ਗੈਲਰੀਆਂ, ਧਾਰਮਿਕ ਅਤੇ ਵਿਦਿਅਕ ਸੰਸਥਾਨਾ ਵਿਚੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਨੂੰ ਬੁੱਢਾ ਦਰਸਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਝੂਠੀਆਂ ਅਤੇ ਗੁਮਰਾਹਕੁੰਨ ਤਸਵੀਰਾਂ ਨੂੰ ਉਤਾਰ ਕੇ ਜਲ ਪ੍ਰਵਾਹ ਜਾਂ ਅਗਨ ਭੇਟ ਕਰਨਾ ਪਏਗਾ। ਅਜਿਹੀਆਂ ਤਸਵੀਰਾਂ ਦੇ ਪੋਸਟਰ ਜਾਂ ਕਲੰਡਰ ਛਾਪਣ ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਉਣੀ ਪਏਗੀ।


ਧਨਵਾਦ:ਨਿਸੋਤ (www.nisot.com )