Friday, July 16, 2010

भूमिका 'टोपी शुक्ला'- राही मासूम रज़ा






मुझे यह उपन्यास लिख कर कोई ख़ास खुशी नहीं हुई| क्योंकि आत्महत्या सभ्यता की हार है| परन्तु टोपी के सामने कोई और रास्ता नहीं था| यह टोपी मैं भी हूं और मेरे ही जैसे और बहुत से लोग भी हैं| हम लोग कहीं न कहीं किसी न किसी अवसर पर "कम्प्रोमाइज़" कर लेते हैं| और इसीलिए हम लोग जी रहे हैं| टोपी कोई देवता या पैग़म्बर नहीं था| किंतु उसने "कम्प्रोमाइज़" नहीं किया और इसीलिए आत्महत्या कर ली | परन्तु आधा गाँव की ही तरह यह किसी एक आदमी या कई आदमियों की कहानी नहीं है| यह कहानी भी समय की है| इस कहानी का हीरो भी समय है| समय के सिवा कोई इस लायक नहीं होता कि उसे किसी कहानी का हीरो बनाया जाय|

आधा गाँव में बेशुमार गालियाँ थीं| मौलाना 'टोपी शुक्ला' में एक भी गाली नहीं है| परन्तु शायद यह पूरा उपन्यास एक गंदी गाली है| और मैं यह गाली डंके की चोट बक रहा हूँ| " यह उपन्यास अश्लील है...... जीवन की तरह | "
- राही मासूम रज़ा

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